नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-15
लक्षणा अपने स्थान पर खड़े होकर सिर्फ उस मंदिर की संरचना को निहारने में लगी थीं और जैसे कुछ ही समय में उस मंदिर के संपूर्ण रहस्य को जान लेने के लिए उतावली हुए जा रही थी। वह एक स्तंभ को छूने पर जब कुछ ना हुआ तो वह परस्पर सभी स्तंभ को बारी-बारी से छू कर देखने लगी, अब तो उसे जैसे अपने आप पर ही क्रोध आने लगा था, क्योंकि कभी कोई स्तंभ लड़खड़ा कर पुनः अपने स्थान पर खड़े हो जाता तो कभी भी अदृश्य हो जाता।
कदंभ दूर खड़े होकर सिर्फ मुस्कुराते हुए इस दृश्य को देख रहा था। अब तो जैसे लक्षणा इसे अपना अपमान समझकर और भी परेशान हो उठी और कदंभ से उसने कहा कि कदंभ यह कौन से मंदिर में ले आए हो तुम??दिखने में तो है ही रहस्यमई, लेकिन जैसा तुमने कहा था वैसा तो यहां कुछ भी नहीं है या फिर क्या मैं नागवंशी नहीं किया। मुझसे कोई भूल हुई जो प्रकृति अपने सभी रहस्य मुझसे छुपा कर रखना चाहती कहते हुए उसकी आंखें नम हो गई।
तभी कदंभ ने से समझाया कि अगर प्रकृति अपना रहस्य यूं ही दिखाने लगे तो शक्तियाँ बिखर जाएगी।उनका संरक्षण संभव नहीं होगा और चारों ओर अराजकता फैल जाएगी। इसलिए प्रकृति से शक्ति और रहस्यों का उद्धार पाने हेतु विनम्रता धैर्य और मन में सच्ची भावना होनी चाहिए। अब तुम खुद ही विचार कर लो कि इसमें से तुम क्या खो रही हो, लक्षणा यह सुन लज्जित हो उठी क्योंकि उसने अपनी उत्सुकता में धैर्य खो दिया और अधीर होकर वह बिना किसी प्रार्थना और विनम्रता के हर स्तंभ को छूते जा रही थी। जो कहीं से भी तार्किक ज्ञान नहीं पड़ता और शायद इसीलिए वे स्वयं शक्तिशाली होने के कारण प्रत्युत्तर में सिर्फ उसे किसी आईने की तरह उसकी झुंझलाहट ही दर्शा रहे थे।
वह जिस अधूरे मन से किसी स्तंभ को यह सोच कर हाथ लगाती कि कुछ नहीं होगा, तो कुछ नहीं होता और जिस स्तंभ को यह सोच कर कि यह थोड़ा तो हिलेगा, वह ठीक उतनी ही प्रतिक्रिया उसे दिखाता, जितनी वह मन में सोचती है।
एक बार फिर से लक्षणा ने ना तो प्रार्थना की और ना ही सच्चे सच्चे मन से यह सोचकर किसी भी मूर्तियां स्तंभ को स्पर्श किया कि उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाए, और इसी कारण वह अब तक सफल ना हो पाई और उसका यही अधीर बर्ताव कदंभ की हंसी का मुख्य कारण था। लक्षणा अपने आप को लज्जित महसूस कर शांत चित्त से उस मंदिर के आभामंडल को आंखें बंद कर प्रणाम कर क्षमा याचना करने लगी की त्रुटि वश और अबोध बालक से व्यवहार के लिए उसे क्षमा किया जाए। यह सोचकर जब वो आंखें बंद कर स्तुति कर रही थी तभी उसने अपने आप में अपने अंतः पटल से निकलने वाली रोशनी को महसूस किया। अब तो जैसे वह आंखें खोलना ही नहीं चाहती थी, उसी प्रकाश में डूबे रहने की चाह लेकर वही उसी स्थान पर बैठ गई और प्रभु स्थिति में मग्न हो गई।
अब उसे बाहरी वातावरण कोई की कोई सुध न रही। उसकी समस्त इच्छाएं अधीरता सब कुछ जैसे धीरे-धीरे शांत होने लगी। उसने अपने आप में स्थित चमत्कारी मणि के दर्शन किए और उसे ऐसा लगने लगा जैसे किसी फूल की भांति अपने स्थान पर जमीन से काफी ऊंचाई पर विराजमान हैं। वहां की शीतल हवा उसे और भी आनंदित करने लगी और वह अपने अंतर्मन से अपने कुल देवता को पुकारने लगी। उसने देखा कि उसके सामने कितनी ही प्रकाश पुंज आना-जाना कर रहे थे, और इन्हीं के बीच अचानक विस्फोट सा हुआ और तभी उसे अपने कुलदेवता के साक्षात दर्शन होने लगे।
इतना विशाल स्वरूप और इतना तेज आभामंडल को लक्षणा सहन न कर पाई और घबराकर सिर झुका उसे प्रणाम किया। और अचानक उसने आंखें खोल दी। उसने देखा की कदंभ जैसे मंद मुस्कान के साथ अपनी इच्छा पूर्ति कर बधाई दे रहा हो, लक्षणा तो जैसे इसी बात का इंतजार कर रही थी कि वो अपने कुलदेवी को अंतर्मन से पुकारे ।
लक्षणा नागमाता को प्रणाम कर वहां से वापस जाने हेतु पीछे की ओर मुड़ी लेकिन वह जैसे लड़खड़ा कर गिरने लगी और उसी क्षण उसे जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने हाथों में थाम लिया। वह कुछ सोच पाती उसके पहले ही उसे वापस अपने स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया। यह देख कदंभ अत्यंत उत्साहित हो, लक्षणा के समक्ष आकर खड़ी हो गया, और उसे धीरे से उसकी स्थिति का आभास कराने लगा। लेकिन तभी लक्षणा ने उस शक्ति को प्रणाम किया और चुपचाप उचित स्थान से निकल गईं।
लक्षणा मंदिर के साइड में बनी हुई सीढ़ियों पर आकर बैठ गई।तभी कदंभ, लक्षणा के पीछे आकर लक्षणा से पूछने लगा। क्या हुआ लक्षणा??? तब लक्षणा ने कदंभ से कहा कि यहां मुझे यहां इस मन्दिर में कुछ अलग सा अनुभव हो रहा है। कदंभ क्या इस मंदिर का भी मुझसे कोई रहस्य जुड़ा है??
कदंभ ने लक्षणा को समझाते हुए कहा कि इस नागमाता के मंदिर में अगर तुम्हें कुछ अलौकिक शक्तियों का आभास हो रहा है, तो यह तुम्हारे पूर्व जन्म का ही कर्म है और उसी के कारण आज हम यहां उपस्थित हो पाए हैं । नागमाता के बिना अनुमति के कोई भी यहां नही आ सकता।
नाग माता की इच्छा थी इसलिए तुम और मैं यहां तक पहुंच पाए हैं। बिना नाग माता की अनुमति तक यहां किसी की परछाई भी नजर नहीं आती है ।और यह हमारे पिछले जन्म के कर्मों का फल जो नागमाता ने खुद हमें बुलाया है।
यह सुनकर लक्षणा से कदंभ से कहती है कदंभ हमें नाग माता का आशीर्वाद लेना चाहिए। दोनों पुनः अंदर जाकर सिर झुकाकर नागमाता को प्रणाम करते हैं। और लक्षणा मन ही मन नाग माता से आशीर्वाद प्राप्त कर कहती है, कि उसे उसकी शक्तियों का आभास कराएं।
नाग माता वहां पर प्रकट हो नाग लक्षणा से कहती है कि जब तुम्हारा समय आएगा लक्षणा तुम्हें जरूर तुम्हारी शक्तियों का आभास करा दिया जाएगा। और तुम और कदंभ आज हमारी ही अनुमति से यहां उपस्थित हुए हो। तुम्हें अपने लक्ष्य की और आगे बढ़ना है और अपने कार्य को पूरा करना है। इस कार्य को पूरा करने के लिए सृष्टि ने तुम्हें चुना है, और कदंभ तुम्हारा माध्यम है। वह तुम्हें रास्ता दिखाएगा। इसलिए तुम कदंभ का साथ कभी मत छोड़ना, कहते हुए नागमता अंतर्ध्यान हो गई और लक्षणा और कदंभ उस मंदिर से लौट आए।
क्रमशः....
Mohammed urooj khan
04-Nov-2023 12:31 PM
👍👍👍👍
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